हाजी मस्तान मिर्ज़ा, अध्यक्ष,ऑल इंडिया दलित मुस्लिम अल्पसंख्यक महासंघ, ४१०, आर्केडिया बिल्डिंग, सर जे जे रोड, जे जे अस्पताल के सामने, बम्बई- ४००००८. हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में छपा हाजी मस्तान का विजिटिंग कार्ड उनका कुल यही परिचय देता हैं. वार्डेन रोड पर सोफिया कॉलेज लेन में उनकी दुमंजिला कोठी हैं ' वर्ते-उल-सुरूर' यानी शांति निवास. पिछले शुक्रवार की शाम साढ़े पांच बजे का वक़्त दिया गया था, पहुंचने पर पता चला कि ' बाबा साहेब' (उन्हें इसी नाम से जाना जाता हैं) दोपहर को जुम्मे की नमाज के बाद सोकर नहीं उठे हैं. स्वागत कक्ष में मस्तान की तीन अलग -अलग तस्वीरें लगी थी. पहली तस्वीर जवानी की थी, कोट- टाई पहने. दूसरी तस्वीर में अधेड मस्तान का पोट्रेट था और तीसरी में दुनिया देख चुके ' बाबा साहेब' का.
करीब साढ़े छह बजे बुलावा आया. हाजी मस्तान पहली मंजिल पर अपने छोटे से कमरे में हल्के आसमानी रंग का सफारी सूट पहनकर बैठा था. सामने टेलिविजन पर ' सनम बेवफा' फिल्म चल रही थी. बताया गया कि केबल टीवी हैं. खैर बाबा साहेब ने रिमोट कंट्रोल से टीवी कि आवाज बंद कर दी और इधर बातचीत शुरू हो गई
आपने दलित मुसिलम अल्पसंख्यक सुरक्षा महासंघ क्यों बनाया?
मुसलमान और दलितों को एकजुट करने के लिए, देश में इनकी आबादी करीब चालीस फीसदी हैं, मगर ये बहुत पिछड़े हैं. पढ़ाई- लिखाई नहीं हुई, सरकारी नौकरी नहीं मिली. पुलिस और फिरकापरस्त इन पर अलग जुल्म करते हैं. एक होकर ही ये लोग हक पा सकेंगे. मौलाना आजाद और किदवई साहब के बाद कोई नेता नहीं हुआ. डा. आम्बेडकर के बाद दलितों के लिए किसी ने नहीं सोचा.
वी पी सिंह और कांशीराम भी तो आपकी पार्टी जैसा काम कर रहे हैं?
दोनों जनता को बेवकूफ बना रहे हैं. इनका मकसद वोट बैंक हैं, दलित और मुसलमानों की भलाई नहीं. आपको याद दिला दूं मैंने १९८५ में महासंघ बनाया था. बाद में इन दोनों ने सोचा
मगर १९८८ के इलाहाबाद उप चुनाव में तो आपने वी पी सिंह के लिए काम किया था?
मुझे उम्मीद थी कि यह आदमी अच्छा काम करेगा,पर इसने किसी की उम्मीद नहीं पूरी की.
आपने १९८४ में दक्षिण बम्बई से लोकसभा के लिए पर्चा दाखिल किया था, फिर वापस क्यों ले लिया?
मुझे लगा कि मैं चुनाव जीत नहीं सकूंगा, बल्कि मेरी उम्मीदवारी से फिरकापरस्तों की जीत होगी. इसी वजह से मेरी पार्टी चुनाव नहीं लड़ रही हैं. पहले हम जमीन पुख्ता कर रहे हैं
तो क्या आप भविष्य में चुनाव लड़ेंगे?
सोचेंगे ( सिगरेट जलाते हुए उन्होंने रुककर जवाब दिया)
आप पर तस्करी करने के आरोप लगे हैं?
मैंने कभी तस्करी नहीं की. मुझे झूठे मामलों में फंसाया गया.आपतकाल में पकड़कर घर की तलाशी ली गई मगर कुछ हाथ नहीं लगा. अदालत ने मुझे हर इल्जाम सेबाइज्जत बरी कर दिया हैं
पर जय प्रकाश नारायण के सामने तो आपने आइन्दा तस्करी तस्करी नहीं करने की कसम खायी थी. यह वादा भी किया था कि तस्करी करने वालों को रोकेंगे.
जय प्रकाशजी के सामने मैंने मुल्क के खिलाफ कोई काम नहीं करने की कसम खायी थी.रही बात तस्करों को रोकने की तो मुझे नहीं मालूम कि तस्कर कौन हैं?
फिर आपका पेशा क्या हैं?
शुरू से बिजनेस करता हूं, कपड़े की दुकानें हैं
पेशे के लिए वक्त निकाल लेते हैं?
अब नहीं, मैं समाज सेवा को ज्यादा वक्त देता हूं.दुकानें मेरे आदमी देखते हैं
इंटरव्यू में आगे हाजी ने दो बातें और कही थी. अयोध्या में मंदिर- मस्जिद दोनों बने. दोनों पक्ष न माने तो अदालत का फैसला माने. दूसरी बात ये कि भारत -पाकिस्तान को एक हो जाना चाहिए. याद रहे ये इंटरव्यू अयोध्या में विवादस्पद ढांचा गिराने से करीब डेढ़ साल पहले हुआ था. इंदौर के बारे में कुछ बातें कही थी जो शायद आज प्रासंगिक नहीं रही.
फिल्म देखने के बाद ये इंटरव्यू आज दोबारा पढ़ा तो लगा कि हाजी मस्तान इज्जत पाने की राह पर काफी आगे बढ़ चुका था. फिल्म में उसकी मौत तभी हो गई जब वो नेता बनने के लिए पहली बार मंच पर आता हैं, लेकिन असल जिंदगी में वो जेपी के सामने कसम खा चुका था, वीपी सिंह का चुनाव प्रचार कर चुका था, खुद चुनाव का पर्चा भरकर वापस ले चुका था और सबसे बड़ी बात की किसी अदालत में उस पर कोई गुनाह साबित नहीं हो पाया.
4 टिप्पणियां:
समाचार पत्र में छपे किसी इंटरव्यू को बहुत दिनों के बाद पढ़ा बहुत मजा आया लिखने का अंदाज बहुत अच्छा है पढ़ते वक्त लगता है कि जैसे टिकटैक देख रहे हैं । धन्यवाद सर अपने खजाने से एक मोती जह जाहिर करने के लिए ।
मुर्तजा
बीस साल पहले लिया गया यह इंटरव्यू आपकी दूरदर्शिता को दिखाता है। इंटरव्यू में पूछे गए कुछ सवाल उस वक्त भले ही प्रासंगिक न लगे हो लेकिन दो दशक में यह मसले बेहद अहम हो गए है। राम जन्म भूमि हो या जातिगत राजनीति यह मसले देश की राजनीति को बदल कर रखने वाले साबित हुए।
आज दोपहर मैं अमिताभ जी की दीवार फ़िल्म देख रहा था
उसमे हाजी मस्तान का जिक्र आया
लेकिन फ़िल्म देखने से ये नही लग रहा था कि फ़िल्म आज से 30 साल पहले बनी हो
इतनी बेहतर फ़िल्में बनने के बाद भी
आज हमारा मुल्क या समाज वहीँ का वहीँ है
कही कोई खाश बदलाव नजर नही आ रहा है
और नही तो बुराइयां और ही बढ़ती गईं है
जैसे लगता है घटनाएं घटनाओं को बढ़ावा दे रही हैं
अगर मैं इस इंटरवि को नहीं पढता तो मैं जान नहीं पाता की हाजी जैसे डॉन का इंतकाम फ़िल्म में दिखाए गए दृश्य जैसे नहीं हुवा। धन्यवाद्
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