रविवार, 2 फ़रवरी 2014

क्या राहुल के इकॉनोमिक्स ज्ञान को भी डाक टिकट के पीछे लिखा जा सकता है!

वित्त मंत्री पी चिदम्बरम के इस बयान की ज्यादा चर्चा हो नहीं पाई, बीबीसी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी के इकॉनोमिक्स की जितनी समझ है उसे डाक टिकट के पीछे जितनी जगह होती है उसमें लिखा जा सकता है. कहने का मतलब ये था कि मोदी की समझ ज़ीरो है. उनकी बात सच हो सकती है, क्योंकि अभी भी मोदी ने कोई प्लान पेश नहीं किया है कि महँगाई कैसे कम होगी? नौकरियाँ कैसे बढ़ेंगीं? लेकिन इस ब्लॉग में चर्चा राहुल के इकॉनोमिक्स की होगी.

चिदम्बरम के इंटरव्यू के हफ्ते भर में दो ऐसी ख़बरें आईं जिसने राहुल की पॉलिसी पर सवाल खड़े कर दिए. सरकार ने ताबड़तोड़ रसोई गैस के सस्ते सिलेंडरों की संख्या सालाना नौ से बढ़ाकर बारह कर दिया. ये फैसला कांग्रेस महाधिवेशन में राहुल की अपील के बाद हुआ. दूसरी खबर थी कि पिछले साल यानी 2012-13 के जीडीपी के आंकड़े घट गए हैं. पहले हिसाब था कि इकॉनोमी 5 फीसदी की रफ़्तार से बढ़ी है, अब आंकड़ें हैं कि बढ़ने की रफ़्तार 4.5 फीसदी थी. आम आदमी पर इसका क्या असर पड़ा ये समझने के लिए एक और आंकड़ा जानना जरूरी है. 2011-12 में प्रति व्यक्ति आय 28 हजार 107 रुपए थी जो 2012-13 में बढ़कर 29 हजार 150 रुपए हुई यानी सालाना एक हजार से थोड़ी ज्यादा की बढोतरी. आमदनी जितनी बढ़ नहीं रही, उससे ज्यादा महंगाई बढ़ रही है.
फिर से चिदम्बरम के इंटरव्यू पर लौटते हैं. उनसे पूछा गया कि घटती आमदनी और बढ़ते दाम का जिम्मेदार कौन है? तो इसके जवाब में चिदम्बरम ने कहा कि 2008 में दुनिया भर में आई आर्थिक मंदी से निबटने के लिए सरकार को तीन दफे स्टिमुलस पैकेज देने पड़े. इससे सरकार का घाटा बढ़ा, हम आज तक इससे जूझ रहे हैं, लेकिन तब इसके अलावा कोई चारा नहीं था. इसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि मोदी की फिस्कल डेफिसिट और करंट अकाउंट डेफिसिट पर क्या सोच हैं किसी को नहीं पता.

फिस्कल डेफिसिट यानी सरकार की आमदनी और खर्च का फर्क. ये लगातार बढ़ रहा है. ये घाटा जब बढ़ता है तब महंगाई बढ़ती है क्योंकि सरकार इस घाटे को पूरा करने के लिए बाजार से पैसे या कर्ज उठाती है. बाजार का नियम है जब जिसकी डिमांड बढ़ती है तो उसके दाम भी बढ़ जाते हैं. पैसे पर भी यही नियम लागू होता है. सरकार के बाजार में आने से ब्याज दरें बढ़ जाती हैं. जिसके चलते कंपनियों को कर्ज उठाना महँगा पड़ता है और वो नया बिजनेस शुरू करने में हिचकती हैं. इससे नई नौकरी नहीं आ पाती जबकि हम जैसे लोगों की लोन की किस्तें बढ़ जाती हैं.

 पिछले पांच सालों में यही दुष्चक्र यूपीए को ले डूबा है. यूपीए ने इस दुष्चक्र को तोड़ने की कोशिश की थी जब पेट्रोल पर सब्सिडी देना करीब डेढ़ साल पहले बंद कर दिया. रसोई गैस के सस्ते सिलेंडर का कोटा नौ कर दिया. हर महीने डीजल के दाम 50-50 पैसे बढ़ाने का फैसला किया था. राहुल गांधी के सलाहकार जयराम रमेश ने कोई दो साल पहले कहा था कि सरकार हर साल पेट्रोलियम सब्सिडी पर करीब दो लाख करोड़ रुपए खर्च करती है जबकि इसका आधा पैसा गाँवों में खर्च होता है. उन्होंने कहा था कि डीजल सब्सिडी महंगी एसयूवी गाड़ी चलाने वालों को मिलती है जबकि एलपीजी का फायदा बहुत सारे ऐसे लोगों को मिलता है जो जिसके हक़दार नहीं हैं.  अभी हर सिलेंडर पर सरकार 762 रुपए सब्सिडी देती है. इसी सोच के तहत सब्सिडी सीधे बैंक खाते में जमा करने की योजना भी शुरू हुई. यानी ये 762 रुपए आपके खाते में होंगे और आप गैस वाले को पूरा पैसे दे देंगे. ये पैसे हर साल 9 सिलेंडरों तक मिलने थे और इसके बाद सिलेंडर खरीदने पर आपको बाजार भाव से करीब 1100 से 1200 रुपए देने पड़ते.

चुनाव जीतने के लिए राहुल गांधी ने महंगाई कम करने का फार्मूला पेश किया उसके नतीजे में सरकार ने ना सिर्फ सस्ते सिलेंडर सालाना बढ़ाकर 12 कर दिया बल्कि बैंक में सब्सिडी ट्रान्सफर की स्कीम भी फिलहाल रोक दी. इससे सरकार पर 5 हजार करोड़ रुपए का एक्सट्रा बोझ बढ़ जाएगा. चिदम्बरम फिस्कल डेफिसिट तो कहीं और से काट छांट करके मैनेज कर लेंगे, पर कांग्रेस फिर उसी रास्ते पर चल पड़ी है जिसमें लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए उनकी आमदनी बढ़ाने पर जोर नहीं है, जोर है इस बात पर कि सरकार माई-बाप बनकर जनता को सब्सिडी के नाम पर भीख देती रहे.

चिदम्बरम अब क्या राहुल गांधी के लिए भी क्या वही बात कहेंगे जो उन्होंने मोदी के लिए कही थी कि इकॉनोमी की समझ डाक टिकट के पीछे जितनी जगह है उसमें लिखी जा सकती है.

रविवार, 5 जनवरी 2014

ये किताब क्यों लिखी?


बहुत दिनों बाद मैंने अपने ब्लॉग में झांक कर देखा तो पता आखिरी ब्लॉग करीब सवा दो साल पहले लिखा था. वो ब्लॉग भी क्या था, भाषण था जिसे मैंने बाद में मैंने लिख डाला था. ब्लॉग तो नहीं लिखा पर इस बीच एक किताब लिख डाली. इसी किताब पर है ये ब्लॉग. किताब का नाम हैं " दलित करोड़पति , १५ प्रेरणादायक कहानियाँ".  किताब को पेंगुइन ने प्रकाशित किया हैं, मूल किताब हिंदी में हैं, इसका अंग्रेजी अनुवाद भी बाजार में आया हैं.

बहुत दोस्तों ने पूछा कि ये किताब क्यों लिखी? इसका जवाब  मेरे पिछले ब्लॉग से शुरू होता हैं.मैं हिंदी दिवस के कार्यक्रम में गया था, वहां यही सुनने मिला कि सरकार हिंदी के बारे में कुछ नहीं करती .मैंने तब कहा था कि हिंदी को अपनी हीन भावना को त्यागना होगा और अलग अलग विषयों पर कंटेंट तैयार करना पड़ेगा. मैंने जिन विषयों का जिक्र किया था उसमें बिजनेस, साइंस जैसे विषय शामिल थे.  तब मुझे लगा था कि सिर्फ भाषण देने से क्या फायदा, मुझे भी कुछ लिखना चाहिए.हिंदी में फिक्शन या कथा साहित्य तो काफी मौजूद हैं पर नॉन फिक्शन की विषय सूची  छोटी दिखाई पड़ती हैं.'दलित करोड़पति ' इसी दिशा में मेरा छोटा सा प्रयास हैं


ये किताब १५ ऐसे लोगों की कहानी हैं जिन्होंने अपने बूते पर करोड़ों का कारोबार खड़ा कर दिया. इस रास्ते में जाति एक बहुत बड़ी बाधा थी, जिसे पार करना मुश्किल था.अगर कोई आपका माल सिर्फ इसलिए ना ख़रीदे क्योंकि आप दलित हैं या फिर आपको अपना नाम बदलकर काम शुरू करना पड़े.ये कहानियां हमारे समाज का एक ऐसा चेहरा पेश करती हैं जो देश के हर कोने में एक जैसा हैं . क्या यूपी, क्या गुजरात ? क्या महाराष्ट्र या पंजाब ? हर राज्य में कहानी एक जैसी हैं, कानून के बाद भी जाति के आधार पर भेदभाव होता हैं. समाज अभी भी नहीं बदला हैं.

आप ये किताब पढ़े और बताए , तारीफ के बजाय कमजोरी बताए तो अच्छा रहेगा