रविवार, 25 मई 2008

ये भी थेरपी हैं

ब्लोगिंग में अभी नया हूँ, इसीलिए दो पोस्ट सिर्फ़ शीर्षक के साथ छप गए अब भी सोच ही रहा हूँ की क्या लिखा जाए? बाबा को ब्लॉग पर मिले रेस्पोंस से मैं अभिभूत हूँ। ज्यादातर मित्रों ने लिखने पर हिम्मत की दाद दी, लेकिन इसमे मेरा भी बड़ा स्वार्थ था और हैं, जैसा की नीता ने लिखा हैं की ब्लोगिंग एक थेरेपी की तरह हैं और इससे मुश्किल भरे इस वक्त में मेरा मन भी बहुत हल्का हो गया हैं।
१५ दिन तक शोक और श्राधकर्म के बाद मैं फिर उसी भागदौड़ में शामिल हो रहा हूँ, जिसे हम दिल्ली मुम्बई में जिन्दगी कहते हैं.जिन्दगी कुछ बदल सी गई थी पर उस बारे में फिर कभी। मेरा पूरा परिवार अब बेहतर हैं और सबका आभार मानते हैं।
इंदौर
२५ मई 2008

kya kahoon?

kya kahoon?

सोमवार, 19 मई 2008

बाबा

बाबा मोटर साइकिल ने ही मेरे बाबा यानि कमलाकर केशव खांडेकर की जिन्दगी बनायी, बिगाड़ी और पिछली १० मई को ख़त्म कर दी करीब ४०-४५ साल पहले उन्होंने इंदौर में मोटर साइकिल के ऑटो पार्ट्स का कारोबार शुरू किया था लेकिन करीब २० साल पहले नए ज़माने की मोटर साइकिल ने कारोबार बदल डाला कंपनियों ने मोटर साइकिल के साथ साथ पार्ट्स बेचने का काम भी अपने डीलर के जरिये करना शुरू कर दिया तो बाबा जैसे छोटे व्यापारी संकट मे आ गए फिर भी उन्होंने ने काम जारी रखा और आजकल वो जिन मोटर साइकिल के पार्ट्स जमा करते थे वो यज्दी, बुलेट जैसे पुरानी पुरानी गाड़ियों के शौकीन लोगो के काम आते थे लेकिन लगता हैं नए ज़माने की मोटर साइकिल को इतना ही मंजूर नही था शायद इसी लिए पिछली १० मई को दिल्ली के सफदरजंग development एरिया के सर्विस रोड पर बजाज पुल्सेर पर सवार एक युवक ने उन्हें टक्कर मार दी और अगले दिन एम्स के ट्रौमा सेंटर में उनका निधन हो गया।
१० मई के शाम ७ बजे से अगली सुबह ८ बजे तक उनके साथ जो हो हुआ वो किसी के साथ न हो। एक दिन पहले ही वो मेरी आई के इंदौर से मेरे साथ कुछ दिन रहने आए थे। आई की स्कूल गर्मियों मे बंद होने पर पहले वो हर साल मुम्बई आते थे और इस बार दिल्ली आए थे। पता नही मुझे क्या सुझा की मैंने ऑफिस निकलने से पहले अपना विजिटिंग कार्ड और उसके पीछे घर का पता /मोबाइल नम्बर लिखकर उन्हें दे दिया था। मैंने उन्हें सिर्फ़ इतना कहा था की २०-२५ साल पहले जिस दिल्ली मे आप हर साल आते थे वह अब बदल चुकी हैं इसलिए आप रस्ते भटक जाए तो यह पता दिखाकर घर तक पंहुच जायेगे। ९ मई को वो शाम को टहलने गए थे और लौट 1० मई शाम वो गए टू हमेशा के लिये।

aai ने रात karib १० बजे फ़ोन किया की बाबा अभी तक घर नही लौटे हैं noida से sda तक सफर मेरे मन men कई ख्याल आए पर bharosa था की बाबा मिल जाएगा। रात bhar unhe घर के पास हर जगह खोजा सिर्फ़ hospitalको chodkar । hospital का ख्याल इसलिए भी नही आया क्योंकि haujkhas police thane और कंट्रोल room ने कहा की मेरे घर के aaspass कोई accident नही हुआ हैं.लेकिन अगले दिन सुबह भी thane से यही जवाब मिला tab मैं hospital चला गया, pahle aims और फिर trauma सेंटर , बाबा आख़िर trauma सेंटर me मिल गए। record से पता चला की shaam सात बजे के aaspas police ASI dharmpal unhe भरती kara गया था। liver me चोट lagne से उनके शरीर से lagatar खून निकल रहा था और dophar बाद उनका निधन हो गया।
मेरे जैसे कई लोग छोटे शहर से दिल्ली mumbai जैसे बड़े शहर me बस गए हैं, लेकिन हमारे माता पिता इन बड़े shaharon me ख़ुद को asahaj mahsoos करते हैं क्योंकि yanha उनकी जान pehachan के लोग कम होते हैं और ghumne phirne की ajadi नही होती.bhagawan न करें की ऐसा किसी के साथ भी हो लेकिन मैंने जो सबक सिखा वो aapse batna chata हूँ
१) माता पिता को एक card जरूर दे जिसमे उनका नाम,पता और आप तक panhuchne के जितने भी नम्बर हो लिख दे ( trauma सेंटर के police wale ने अगले दिन ११ बजे मुझे वो card दिखाया , सच झूठ मैं नही janta पर उसने कहा की आपका नम्बर लगा नहीं, मुझे इतना पता हैं की मेरे पास कोई फ़ोन नहीं आया)
२) मैं हमेशा jane या anjane नम्बर से आने wala फ़ोन लेता hun , पता नही कौन sa फ़ोन आप न ले और फिर zindgi bhar afsos (लेकिन उस रात कोई फ़ोन आया ही )
३)माता पिता akale bahar nikle tab सम्भव हो टू unhe मोबाइल फ़ोन दे ( मेरे बाबा फ़ोन नहीं रखते थे, फ़ोन aai के पास घर पर ही था)
४) अगर कोई अपना खो जाए टू hospital me जरूर देख लेना ( उस वक्त ये सोचना भी thik नहीं लगता हैं, लेकिन मुझे नही पता की बाबा bach paate या नहीं लेकिन रात bhar akale उनका hospital me rahana मुझे hamesh kachota रहेगा।)
बस इतना ही कहना था, हाँ बहुत लोगों ने मुझे कहा की दिल्ली बड़ा bedard शहर हैं मुझे ऐसा लगा भी लेकिन अब सोचता hun टू लगता हैं की शहर नहीं लोग अच्छे बुरे हो सकते हैं वरना इस दिल्ली me जिन दोस्तों ने मेरी मदद की haunsala badhaya unme से कई से टू मैं varshon से मिला तक नही था। और इस घटना का matlab यह katai नहीं nikalana चाहिए की हमारे माँ पिता दिल्ली mumbai मैं आए ही नही और आए टू घर me कैद होकर रहीं । मेरी aai फिर दिल्ली आएगी और जब तक मन रहेगा yanhan rahengi ।

१९ मई २००८
indore
pahali bar ब्लॉग लिखा हैं vartni की कुछ galtiyan हैं लेकिन अभी thik नहीं कर paunga