सोमवार, 19 मई 2008

बाबा

बाबा मोटर साइकिल ने ही मेरे बाबा यानि कमलाकर केशव खांडेकर की जिन्दगी बनायी, बिगाड़ी और पिछली १० मई को ख़त्म कर दी करीब ४०-४५ साल पहले उन्होंने इंदौर में मोटर साइकिल के ऑटो पार्ट्स का कारोबार शुरू किया था लेकिन करीब २० साल पहले नए ज़माने की मोटर साइकिल ने कारोबार बदल डाला कंपनियों ने मोटर साइकिल के साथ साथ पार्ट्स बेचने का काम भी अपने डीलर के जरिये करना शुरू कर दिया तो बाबा जैसे छोटे व्यापारी संकट मे आ गए फिर भी उन्होंने ने काम जारी रखा और आजकल वो जिन मोटर साइकिल के पार्ट्स जमा करते थे वो यज्दी, बुलेट जैसे पुरानी पुरानी गाड़ियों के शौकीन लोगो के काम आते थे लेकिन लगता हैं नए ज़माने की मोटर साइकिल को इतना ही मंजूर नही था शायद इसी लिए पिछली १० मई को दिल्ली के सफदरजंग development एरिया के सर्विस रोड पर बजाज पुल्सेर पर सवार एक युवक ने उन्हें टक्कर मार दी और अगले दिन एम्स के ट्रौमा सेंटर में उनका निधन हो गया।
१० मई के शाम ७ बजे से अगली सुबह ८ बजे तक उनके साथ जो हो हुआ वो किसी के साथ न हो। एक दिन पहले ही वो मेरी आई के इंदौर से मेरे साथ कुछ दिन रहने आए थे। आई की स्कूल गर्मियों मे बंद होने पर पहले वो हर साल मुम्बई आते थे और इस बार दिल्ली आए थे। पता नही मुझे क्या सुझा की मैंने ऑफिस निकलने से पहले अपना विजिटिंग कार्ड और उसके पीछे घर का पता /मोबाइल नम्बर लिखकर उन्हें दे दिया था। मैंने उन्हें सिर्फ़ इतना कहा था की २०-२५ साल पहले जिस दिल्ली मे आप हर साल आते थे वह अब बदल चुकी हैं इसलिए आप रस्ते भटक जाए तो यह पता दिखाकर घर तक पंहुच जायेगे। ९ मई को वो शाम को टहलने गए थे और लौट 1० मई शाम वो गए टू हमेशा के लिये।

aai ने रात karib १० बजे फ़ोन किया की बाबा अभी तक घर नही लौटे हैं noida से sda तक सफर मेरे मन men कई ख्याल आए पर bharosa था की बाबा मिल जाएगा। रात bhar unhe घर के पास हर जगह खोजा सिर्फ़ hospitalको chodkar । hospital का ख्याल इसलिए भी नही आया क्योंकि haujkhas police thane और कंट्रोल room ने कहा की मेरे घर के aaspass कोई accident नही हुआ हैं.लेकिन अगले दिन सुबह भी thane से यही जवाब मिला tab मैं hospital चला गया, pahle aims और फिर trauma सेंटर , बाबा आख़िर trauma सेंटर me मिल गए। record से पता चला की shaam सात बजे के aaspas police ASI dharmpal unhe भरती kara गया था। liver me चोट lagne से उनके शरीर से lagatar खून निकल रहा था और dophar बाद उनका निधन हो गया।
मेरे जैसे कई लोग छोटे शहर से दिल्ली mumbai जैसे बड़े शहर me बस गए हैं, लेकिन हमारे माता पिता इन बड़े shaharon me ख़ुद को asahaj mahsoos करते हैं क्योंकि yanha उनकी जान pehachan के लोग कम होते हैं और ghumne phirne की ajadi नही होती.bhagawan न करें की ऐसा किसी के साथ भी हो लेकिन मैंने जो सबक सिखा वो aapse batna chata हूँ
१) माता पिता को एक card जरूर दे जिसमे उनका नाम,पता और आप तक panhuchne के जितने भी नम्बर हो लिख दे ( trauma सेंटर के police wale ने अगले दिन ११ बजे मुझे वो card दिखाया , सच झूठ मैं नही janta पर उसने कहा की आपका नम्बर लगा नहीं, मुझे इतना पता हैं की मेरे पास कोई फ़ोन नहीं आया)
२) मैं हमेशा jane या anjane नम्बर से आने wala फ़ोन लेता hun , पता नही कौन sa फ़ोन आप न ले और फिर zindgi bhar afsos (लेकिन उस रात कोई फ़ोन आया ही )
३)माता पिता akale bahar nikle tab सम्भव हो टू unhe मोबाइल फ़ोन दे ( मेरे बाबा फ़ोन नहीं रखते थे, फ़ोन aai के पास घर पर ही था)
४) अगर कोई अपना खो जाए टू hospital me जरूर देख लेना ( उस वक्त ये सोचना भी thik नहीं लगता हैं, लेकिन मुझे नही पता की बाबा bach paate या नहीं लेकिन रात bhar akale उनका hospital me rahana मुझे hamesh kachota रहेगा।)
बस इतना ही कहना था, हाँ बहुत लोगों ने मुझे कहा की दिल्ली बड़ा bedard शहर हैं मुझे ऐसा लगा भी लेकिन अब सोचता hun टू लगता हैं की शहर नहीं लोग अच्छे बुरे हो सकते हैं वरना इस दिल्ली me जिन दोस्तों ने मेरी मदद की haunsala badhaya unme से कई से टू मैं varshon से मिला तक नही था। और इस घटना का matlab यह katai नहीं nikalana चाहिए की हमारे माँ पिता दिल्ली mumbai मैं आए ही नही और आए टू घर me कैद होकर रहीं । मेरी aai फिर दिल्ली आएगी और जब तक मन रहेगा yanhan rahengi ।

१९ मई २००८
indore
pahali bar ब्लॉग लिखा हैं vartni की कुछ galtiyan हैं लेकिन अभी thik नहीं कर paunga



33 टिप्‍पणियां:

आर. अनुराधा ने कहा…

Milind, Har ghatanaa (achchi ya buree) hame kuch sikhana chahatee hai. Hamme se kuch log sabak naheen seekhate hain, kuch seekhate hain aur bahut kam hote hain jo apane seekhe sabak ko bina kisi swarth ke sabke saath bantanaa chahte hain aur bantate hain taaki doosron ko us sthiti se bachane ka ya usme pad hi gaye to usse nibatne kaa mauka mil jaye. Tumne to ek blog hi khol liya. Tumhare jazbe ki main kadra kartee hun aur is blog ke khoob sakriya rahne aur khoob logon ke isse judane kee kamna kartee hun.

बेनामी ने कहा…

"Tragedies are a test of your strenght and faith in the supreme" - renouned British author James Hardy wrote in Tess.

Your account is heartfelt and conveys a lot.

You have correctly said, शहर अच्छा या बुरा नहीं होता - लोग अच्छे या बुरे होते हैं। तुम खुद एक अच्छे इंसान हो, लिहाजा, खुदा ने तुम्हें कुछ अच्छे लोगों से भी मिलाया।

अपना ख्याल रखना।

बेनामी ने कहा…

dear milind,
tumhari baten dil ko chhuti hai. iss samay mere papa aur maa bhi mere pas mumbai me aaye hain. Tumhari kuch baten main apnaunga.lekin ek bat kahunga - Janm, Shadi aur death upar wale ke hath me hota hai. isme hum insan ka kai bas nahi.

Phir bhi main janta hoon tum ek bahadur insan ho. aage apne aai ka khayal rakhna.kabhi kisi cheech ki jarurat pade to ye bada bhai tumhare sath khara rahega. sumant

दिलीप मंडल ने कहा…

ऐसी हर घटना हमें कुछ सिखा जाती है। मिलिंद, तुमने अपने अनुभव पब्लिक डोमेन में डाले, ये कई लोगों के लिए उपयोगी होगा। दिल्ली के बेदिल और बेदर्द होने के बारे में जो लोग कहते हैं, उससे सहमत हो पाना मुश्किल लगता है क्योंकि हम शहर के साथ कहां जीते हैं। हम चंद लोगों के साथ ही तो जीते है।

बेनामी ने कहा…

Milind,
The way you have handled a tragedy like this speaks volumes about your sensitivity. It takes immense balance and poise to share what you have gone through. Your learnings stay with me; so does your goodness.
Take care.

बेनामी ने कहा…

It was shocking news. It's not easy to understand the feelings and pain your have gone through but can share my sincere condolences. Life teaches lessons to remember byheart.YOur blog speaks volumes of the pain and lessons.

DINESH AKULA

बेनामी ने कहा…

It was shocking news. It's not easy to understand the feelings and pain you have gone through but can share my sincere condolences. Life teaches lessons to remember byheart.YOur blog speaks volumes of the pain and lessons to learn.

AKULA

बेनामी ने कहा…

Milind,

pehli baat, mujhe achchi lagi ki tumne blogging shuru kiya, woh to tumhe sms par he bataya. Yeh internet ke kuch fayde hai..

Uske kai vajah hai...yeh apne liye therapeutic to hai he..personal to hai he...lekin apna dukh-sukh baa(n)t kar ek chein milti hai...doosro ne bhi aisa dukha seyha hoga ya nahi woh apne sath hai..ek sukun milta hai

mein janti hu tumhe kaisa lagta hoga. Roz jab mere baba bahar jate hai toh mei jaan boochkar unhe kehti ku "go safe baba". lekin usse kya hog pata nahi. Itna jaroor janti hu ki mumbai shahr badal gaya hai...footpath par chalna mushkil hai..gadiyan tez bhagti hai..roz dar lagta

Shukar hai kuxh saal pehle hum sab logon ne senior citizen card banakar liye aur woh apne wallet mei rakhte hai. Lekin isse sirf tassali milti hai...usse kuch apatti rukegi is par pura bharosa nahi hai..

mushkilei ati hai..lekin jab aise hadse ka samna karna padta hai tab hum apne aap ko tokne lagte hai.. bura lagta hai...khud ne kya galti ki is par sochte rehte hai....is mei tumhari koi galti nahi..tumne bahut koshish ki.

Achcha laga tumne jo likha hai pure dil se likha hai...samajh sakti hu tum par kya beeti hogi... roshni ne bataya..achcha hai tumhare sath dost the...apna khayal rakhna aur khas taur par apne aai ka. Woh ek bahut he strong aurat hai..lekin is waqt ussse tumhari zaroorat kagegi..apne sath kuch mahiney rakhan dilli mein...tc, tumse baat karungi...

neeta

बेनामी ने कहा…

Milind,

the mos imp thing is even in this time of hardship..u've cared to reach out to others who have old parents...that's really nice. Its really imp...also it may be futile to pursue wt police, but like i said if we who have some access don't do our bit (even our times of crisis) its even worse for the common person. They poor things have NO power, access, no way to go about getting justice..u at least try for ur baba's sake... neeta

Unknown ने कहा…

Milind, I admire ur courage to put together this loss in words. And it is indeed a lesson to all of us who live in so called big heartless cities.
Please take care of urself and ur mom. I will pray god to give u and ur family strength to bear this loss. U r a brave man and u have always overcome pain in life.

Ayesha Khanum

बेनामी ने कहा…

It was realy touching ..now a days we hardly have time for our family and dearones ..we realise the loss after we loose them ..we are earning a lot but i always realise that i am spending something which i will never be able to earn back ..i realised it again after reading your blog...

take care ..

अनिल रघुराज ने कहा…

मिलिंद जी, इतने गहरे आघात के बावजूद आप उससे ऊपर उठकर ऐसी सावधानियों की बात कर रहे हैं ताकि औरों के साथ ऐसा न हो, यह अपने आप में बड़ी बात है। ज़िंदगी में इतने डूबे, फिर भी उससे निस्पृह... जब से मैंने इस हादसे के बारे में सुना है तभी से मन गुस्से से भरा हुआ है। दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते एक देश की राजधानी के पॉश इलाके में यह हादसा हुआ। शाम को 7 बजे। जेब में पते और फोन नंबर वाले कार्ड के होते हुए भी घरवालों को सूचित नहीं किया। एक घायल बुजुर्ग कम से कम 15 घंटे तक ज़िंदगी और मौत से जूझते रहे। आखिरकार वे हार गए। फिर भी आप तक खबर नहीं पहुंची। आप खुद खोजते-खोजते एम्स के ट्रॉमा सेंटर में पहुंचे।
किसी विकसित देश में इंसान की जान के साथ ऐसी लापरवाही की कल्पना तक नहीं की जा सकती। हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दावा करते हैं। लेकिन लोकतंत्र के केंद्र में होता है व्यक्ति और उसकी हिफाजत। और अपने यहां ऐसा ‘लोकतंत्र’ है जिसमें राजधानी के पॉश इलाके में दुर्घटना में घायल बुजुर्ग को अपनों के होते हुए भी न तो उचित चिकित्सा मिल पाती है, न ही देखभाल। मिलिंद जी, होनी-वोनी कुछ नहीं होती। यह एक अपराध है जिसका दोषी है नई दिल्ली प्रशासन। विकसित देशों के आम शहरों में भी सड़कों पर सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं। क्या हमारी सरकार दिल्ली, मुंबई, कोलकाता या बेंगलुरु में ऐसा नहीं कर सकती? जिस मोटरसाइकिल सवार ने बाबा को मारा, क्या वह अभी तक पकड़ में आया है?
संदर्भवश यूं ही बता दूं कि साल 1991 की बात है। कानपुर का मेरा एक दोस्त अमेरिका में रिसर्च करने गया था। उसके पिता जी उससे मिलने गए तो एक दिन सुबह घर के बाहर फुटपाथ पर एक कचरे के डब्बे से टकरा गए और उनके घुटने की हड्डी टूट गई। शहर की नगरपालिका ने न केवल उनका पूरा इलाज़ कराया, बल्कि सोचिए, उस समय करीब 7 करोड़ रुपए का मुआवज़ा भी दिया था। इसलिए, क्योंकि कचरे का प्रबंध करनेवाली नगरपालिका ने अपनी गलती मानी और तब उसे उसकी भरपाई करनी ही थी।
अनिल सिंह, मुंबई

Sandeep Singh ने कहा…

मिलिंद जी दुखद समाचार उसी दिन उमेश कुमावत जी के जरिए पता चला था... आपकी गहन संवेदना से कुछ शब्दों के जरिए जुड़ना चाहा, सोचा एसएमएस करूं, लेकिन यकीनन ऐसे मौके पर जो बहुतों के साथ होता है वही हुआ, शब्द अचानक बौने हो गए......एक अपूर्णीय क्षति के बारे में क्या लिखूं ? बहुत देर सोचा लेकिन उस वक्त धीरज, धैर्य का हर लफ़्ज मुंह चिढ़ाता दिखा.....आखिरकार मन मसोस कर मौन रह गया।
पर भोगा हुआ यथार्त लफ़्जों का मोहताज नहीं होता इस बात का इल्म आपने कराया। आपकी अनुभवजन्य हिदायतें वास्तव में क़ाबिलेगौर हैं। सचमुच शहर बुरा या अच्छा नहीं होता बुरा-भला तो इंसान ही हो सकता है लेकिन कंकरीट के जंगल किसी अपने का यूं खो जाना........ “(मुझे नही पता की बाबा bach paate या नहीं लेकिन रात bhar akale उनका hospital me rahana मुझे hamesh kachota रहेगा।)”
सपनों में अपनों के खोने का गम बेचैन कर देता है, लेकिन आपकी जिद और जुनून के आगे नियति के हर वार कमजोर साबित होगा...मुझे भरोसा है।

एक दिन
जब मैं दादू के साथ सोया था
लिपटकर अचानक खूब रोया था
नहीं उभरी थी
वो सीघों वाली आकृतियां
न ही चमकी थीं
लाल डोरे वाली आंखे
ढुलकते टेसुओं के साथ
सपनों में उस रात,
दादू आए थे।
फिर कभी ऐसे न आना
दादू सपना मत बन जाना
सुबकते हुए कहा था मैने
मत दिखाना दादू, मत दिखाना
ऐसे सपने
महसूस किया था
हथेलियों का कंपन गालों पर अपने
बोले थे दादू, बहुत ही धीमे
मेरे अपने नन्हें
संजोए रखना इन्हें
बस संजोए रखना इन्हें।

संदीप सिंह, मुंबई

masha ने कहा…

milind isse jyada main tumse kya kahu ki tumhari takleef main samjh sakti hun. door bhale na kar pau. haadase agar roke ja sakte to we haadse kyu kahlate. tumne ek jhatake mein apne baba ko khoya, maine kai mahino unhe tadapte dkh kar. zindagi hai, chalti hai. tumne ek baar kaha tha, koi bhi rishta hamare saath sari zindagi nahi rehta. par main manti hun, admi bhale saath na ho, rishta saari zindagi hamare saath hota hai. baba ke jane ke baad tumhe yeh mehsoos hoga ki woh bhale na rahein, unse tumhara rishta hamesha zinda rahega. main chahungi ki tum aise rishte aur banao. hum chahe to kuch rishte hamare sath hamesha reh sakte hai. bas hath badhane ki jaroorat hai.
ant mein, jab bhi akele ho, kuch dosto ko yaad karo. wo hamesha maujood honge.

राजेश कुमार ने कहा…

मिलिंद जी, दर्द क्या होता है इसे शब्दों में बांधना बहुत ही कठिन काम है। ऐसे मौके पर दर्द सहते हुए दूसरों के भलाई के लिए कदम उठाना अपने आप में बड़ी बात है। निश्चित रूप से आप एक नेक इंसान है जो दुख:दर्द के समय भी अपनी बात रख हजारों लोगों को आने वाले संकट से सावधान कर दिया है।
इंसान के बस में बहुत कुछ नहीं होता। फिर भी आपने ने जो बातें सामने लाई है उससे यह लगता है कि पुलिस या हॉस्पिटल वाले सावधानी से काम लिया होता तो 'बाबा'को बचाया जा सकता था। उनके पॉकेट में आपका नाम, पत्ता और फोन नम्बर सब कुछ था। यदि पुलिस या हॉस्पिटल वाले पॉकेट की जांच कर आपको फोन कर दिया होता तो'बाबा'को बचाया जा सकता था। ऐसा पुलिस और हॉस्पिटल वालों को करना भी चाहिये था। लेकिन नहीं किया जो कि एक भंयकर भूल है। क्षमा नहीं किया जा सकता। दोनो हीं विभाग ने जिम्मेदारी से काम नहीं किया। मोटरसाइकिल वाले ने भी बड़ा अपराध किया जो क्षमा के लायक नहीं है।

दिल्ली और मुंबई ऐसा शहर है जहां कोई किसी को नहीं जानता। आपके के दोस्त यार को छोड़। आम आदमी को किसी एक दूसरे से मतलब नहीं। आपके संदेश से बहुत कुछ सीख लेने की जरुरत है।
अपना ख्याल रखियेगा।

बेनामी ने कहा…

एक आम इंसान के लिए ये वाकया एक लाइलाज सी टीस और नासूर सी नियति की तरह हैं….... और इन्हीं से दो-चार और दो-दो हाथ करने के बाद भी जिस सहजता, साफगोई और हिम्मत से आपने अपनी बात रखी है वो आप जैसा जुझारु और व्यहारिक शख्स ही कर सकता है.....वरना पिता को खोने का खालीपन क्या होता है ये हम सब जानते हैं....खासकर कुछ बनने-पाने के बाद ......और यूं खोने से तो बड़ी कोई विडम्बना ही नहीं.....।

वाकई...
इस दौरे तरक्की में हर चीज तो मंहगी है,
इंसा का लहू लेकिन पानी से भी सस्ता है ।


मैनें भी महानगर के इसी संत्रास और मायावी चक्रव्यूह की उलझन के बीच खोकर....खोया था अपनी मां को..... नहीं कर पाया कुछ, नहीं ले पाया खबर, नहीं रह पाया पास......लिहाजा वो सारी माएं-सारे पिता याद आ जाते हैं.......बरबस ।

इक सदा सी आ रही है कानों में
काश हम इसे साफ सुन सकते

यहीं ये भी पता लगता है कि हम कितने ‘आम’ हैं.....बाकी सब गफलत, क्षणभंगुर और छलावा......लेकिन हर कीमत पर हमें अपना जीवट तो बचाये रखना ही होगा.....क्यों कि इसी में है जीवन.....हमारा, आपका और सबका.....

गुजर रहे हैं कई कारवां धुंधलके में
शायद अब इंकलाब में ज्यादा देर नहीं


संवेदनाएं...........

विजय शर्मा

Radhika Chaturvedi Kaushik ने कहा…

Milind,

daftar mein aye din apni taklefein apko batate batate yeh bhool gayi thi , ki taklif apko bhi hoti hai, mushkil daur se apko bhi gazarna padta hai....Us din is baat ka ehsaas hua jab yeh khabar mili.
Kehte hain ki doosre ki taklif dekho to apni taklif bauni lagti hai...isliye keh rahi hoon...ki kam se kam aapne apne baba ke saath 37 saal tho guzare, maine apni ma ke saath 7 saal bhi nahin bitaye. Yeh isliye keh rahi hoon, ki kam se kam apke baba ne apko pala posa, pyar diya...aur apne use khoob jiya...unko yaad kijiye unke saath bitaye palon ke liye aur apne aapko kisi baat ke liye blame mut kariye...
Apki is mushkil ghadi se maine yeh baat seekhi ki dukh wakai bina bataye ata hai aur hum usse pare nahin hai...yeh hum mein se kisi ke saath ho sakta hai...isliye main aur achi tarah se jeena chahti hoon, apne parivaar walon ke liye jeena chahti hoon, har khwaish poori karni chahti hooon, wakai pata nahin ki yeh mauka kal ho na ho...
Apna khayal rakhiye

Rajesh Tripathi ने कहा…

सर,
आज आपका ब्लॉग पढ़ा, वो सारी बाते एक साथ घूम गई जब ये दुखत समाचार हम उमेश सर के फोन पर सुन रहे थे, और हम यही बात कर रहे थे कि सर को, बाबा को खोजने के लिए और लोगों की मदद लेनी चाहिए थी शायद ये अपशगुन होने से बच जाता बाबा बच जाते लेकिन आज आपकी जुबानी पढ़ कर आंख ढबढबा आई। लेकिन सर सच कहूं मैं अब अपने बाबू(पिता जी) और अम्मा(माता जी) को मुंबई लाने की हिम्मत नही जुटा पा रहा। मेरे बाबू जी कभी मुंबई नही आये, इस बार छुट्टी पर गया था तो उनसे वादा करके आया था कि मैं आपका टिकट भेज दूंगा आप अप्पू(मेरा भतीजा)के साथ मुंबई आ जाना। लेकिन बाबू जी के लिए मैं मुंबई का टिकट भेज पाऊंगा या नही अभी नही बता सकता लेकिन आपकी हिम्मत से भरी, लिखी गई बाते शायद जरूर मुझे हिम्मत जुटाने में मदद करेंगी।
....राजेश त्रिपाठी

Rajesh Tripathi ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

मुझे लगता है कि दर्द हमें हमेशा बेहतर इंसान बनाता है। "करुणा" आपकी शख्सियत का सबसे अहम जज़्बा है उसे इस material world और इस मशीनी व्यवस्था में बचाये रखना "जो हमें सिर्फ काम करने की चीज बना देना चाहती है।"
Take care.

कीर्ति राणा ने कहा…

भाई मिलिंद,
पिताजी की मृत्यु का विस्तृत विवरण पढ़ा, जो स्तब्ध कर देने वाला है. महानगरों में जिस तरह से पहचान का संकट खड़ा होता जा रहा है. साथ ही आत्मीयता भी रिसने लगी है. दोष रफ्तार का मानना चाहिए। मेरी संवेदनाएं स्वीकारें.
कीर्ति राणा,
श्रीगंगानगर
www.jhannat.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

Namaste sir,
sir aapne apne blog may sach kahan ki agar hum apne chahne walo ke antim samay may kisi karan vash sath nahi hote tou uska koft hamesha hamare mann ko kachota rehta hai,lekin aapka apne baba ke sath mouke par nahi hone may aapka koi dosh nahi hai ye tou upar wale ki marzi thee.Lekin sir ye bhi sach hai ki insan jise zyada chahta hai uske samne pran nahi tyagta , aapke baba aapko aur apne pure parivaar ko bahut chahte the shayad isliye ye sab hua.sir jab aapke baba ki death hui tab main kanpur may thee usi samay mere dada ji ki tabiyat bahut khaab chal rahee thee.ye samay aisa hota hai mano sab veran hai,sansar ek sapne ki tarah lagta hai.mano sab kuch bekar hai.maine apne jeevan may mrityu bahut kareeb se dekhi hai..5-saal pehle meri maa aur abb mere dada ji.lekin sir hamein himmat se kaam lena hota hai. hai na? aur apne mata-pita ka naam roshan karna hota hai.dekhiye apne tou apne 'BABA' ke naam se blog hi khol diya aur mera yakeen hai aapke iss blog ke kholne se bahut sare logo ki band aakhe bhi khul jayengi...

बेनामी ने कहा…

मिलिंद जी, अच्छा लगा की आपने अपने दिल की बात दुनिया के सामने रखी। आप एक शर्मीले इंसान है,अपने जज्बातों पर काबू रखना जानते हैं। आप किसी को बेवजह परेशान करना नहीं चाहते, किसी की मदद लेने में भी संकोच करते हैं। लेकिन जीवन में कभी-कभी मुश्किल घड़ी में अपनों की मदद लेने से कभी मत शरमाइएगा।

आपका ये ब्लाग पढ़कर थोड़ा भावुक हो गया हूं। चार साल पहले मैंने भी अपनी मां को खो दिया था। मैं आखिरी वक्त पर उनसे बात भी नहीं कर पाया था। आज भी दिल में यही टीस है कि शायद वो मुझसे कुछ कहना चाहती थी लेकिन कह नहीं पाई। मैं उनकी इच्छा पूरी नहीं कर पाया।

मैं आपकी हालत समझ सकता हूं कि आप पर क्या बीत रही होगी। आप के जरिए मैं सभी से यही कहना चाहूंगा कि मां-बाप की कोई भी इच्छा पूरी करने में कभी देर ना करें, कई बार जिंदगी दूसरा मौका नहीं देती। इस मुश्किल घड़ी में आपकी मां को आपकी सबसे ज्यादा जरूरत है। उनकी हर इच्छा पूरी करें।

मैं समझ सकता हूं कि माता या पिता को खोने के बाद जिंदगी जीना आसान नहीं होता लेकिन ऐसे वक्त में हिम्मत और जिंदगी की तरफ सकारात्मक रवैया ही जीवन को आगे बढ़ाने में मदद करता है।

कौशल लखोटिया

बेनामी ने कहा…

मिलिंद जी,
इस घटना ने निश्चित तौर पर हम सभी को हिला कर रख दिया है , हममें से ज्यादातर लोग ऐसे ही हैं जो अपने माता पिता को रोज घर पर छोड़ कर काम पर जाते हैं और काम के बीच शायद ही एक बार भी उनका हाल चाल पूछने का वक्त भी नहीं मिल पाता।
मिलिंद जी ने इस ह़ृदय विदारक घटना के बाद जो एहतियात बरतने को हम सबसे कहा है उसीमें मैं भी चंद लाइनें जोड़ना चाहता हूं -

इस तरह के हालात से जब भी गुजरें तुरंत दफ्तर के सहकर्मियों , कम से कम आसपास के लोगों को जरूर सूचित करें. ऐसे वक्त में मुझे नहीं लगता कि कोई अपने अपने तरीके से अपने -अपने साधन से जितना हो सके करेगा। हो सकता है किसी न किसी के जरिये हमारी मुश्किल हल हो जाए...हो सकता है हमारा ही कोई साथी उस अस्पताल तक पहुंच जाए जहां हमारे बाबूजी हमारा इंतजार कर रहे हों.... क्योंकि ये आज अगर आपके साथ हुआ है तो कल किसी के साथ भी हो सकता है, अगर आपके मन में ये ख्याल आता है कि मान लीजिए हमने सभी को ये खबर दे दी कि मेरे पिता जी लापता हैं और थोड़ी देर बाद वो टहलते हुए घर आ जाते हैं तो बड़ी अजीब स्थिति हो जाएगी , तो ये सोंचना गलत है इस अजीब स्थिति की परवाह ना करें ....फिर उन लोगों से संकोच क्या जिनके बीच आप अपना आधे से ज्यादा दिन बिताते हैं....और अगर इस साझा प्रयास से हम किसी एक को भी बचा लेते हैं तो शायद ये प्रयास सार्थक होगा। इस बारे में मैं अन्य़ लोगों के विचारों का भी स्वागत करूंगा।
- रजनीकांत

अनुराग मुस्कान ने कहा…

मिलिंद जी,
संवेदना व्यक्त करने के मामले में मेरे शब्द हमेशा चूकते रहे हैं... भावनात्मक और मानसिक रूप से किसी के दुख को आत्मसात करने के बाद कुछ कहने की जितनी भी कोशिश कर लूं, 'मौन' से ज्यादा न कुछ समेट ही पाया, और न कुछ उड़ेल पाया... लगता है ऐसे में कहूं भी तो क्या... इसलिए आपको एसएमएस किया... आठ साल की उम्र में मैंने अपने पिता को खो दिया था... मेरी मां की उम्र तब 28 साल की थी... संवेदनाओं के हजारों शब्द भी तब मेरी मां, मेरे और मेरी नन्ही सी बहन के अंदर की टूटन और दरार को भर नहीं पाए थे... मुझे लगता था कोई बार-बार मुझे इस बात का अहसास क्यूं कराए कि मैंने कुछ खो दिया है... संवेदनाओं के शब्द मुझे बेचारा सा बना देते थे... ये मेरी नितांत व्यक्तिगत और बालमन की सोच भी हो सकती है... लेकिन मेरी उम्र के साथ-साथ मेरी ये सोच भी मैच्योर होती गई... मुझे आज भी लगता है कि किसी अपने को खो देने की रिक्तता के अहसास को खुद उस अपने के अलावा किसी शह से नहीं भरा जा सकता... शब्दों से तो कम से कम बिलकुल नही... अक्सर बचपन में पेश आए हालातों और परिस्थितियों से जूझते हुए किसी एक धारणा को मायने मिलने लगते हैं... मेरे यही मायने किसी और के उन्हीं हालातों को देखकर मौन का शीर्षक ले लेते हैं शायद...
बाबा को मेरी मौन श्रद्धांजली...

Runna ने कहा…

Dear sir
came to know about your father... I am really sorry for the same.... Hope manoj & your mom are in better condition now.
Sir you are my hero & I always saw a brother in you. Please never think that you are alone. Even if we do not meet very often but my best wishesh are always there. I remember you in every now and then. I wish I could be with you..... Please take care.

Runna

बेनामी ने कहा…

Dear Milind
Your Blog has had a more far reaching impact than you probably imagined. Undoubtedly as we read your blog, we go back into our past and introspect about our loved ones whom we lost. A few thoughts from my side...

Years back when my dad was admitted to the hospital, I received a call from my mom saying the doctor had asked the family members to be with him during his last few moments. The drive from Nariman Point (where the Aaj Tak office was) to Sion (where he was hospitalized) during the evening peak hours took me close to two hours. I was too late.

In a smaller town with less traffic, I might have reached well in time. Yet these ‘if only’ and ‘might have beens’ are not to be blamed for my loss. Neither are the ‘Mumbai and Delhi lives’ that we lead. After all, it is we who have chosen these lives over other less taxing ones.

I realize, it is not on that fateful day that I lost my dad. I already lost him when days before his demise, I opted to go to office instead of taking leave and staying back at home with him. That one regret still hurts.

Milind, apart from the lessons it imparts, your Blog is a wake up call for us to be with people we want to be while they are still around.
dipta

बेनामी ने कहा…

मिलींदजी,

शब्द भावना आणि व्यवहार्यता...

एका सच्च्या मुलाच्या आणि त्याच बरोबर एका कर्तव्यदक्ष नागरीकांच्या भावना वाचून मन भरून आलं. शहर अच्छा या बुरा नही होता, लोग अच्छे या बुरे होते है...या शब्दांमधून तुमच्या सच्च्या भावना प्रकट होतात...आपण स्वतः एक साधा आणि सरळ व्यक्ती असल्याने तुम्हाला निश्चितपणे सगळे चांगलेच भेटले यात शंका नाही..

एक सहकारी

बेनामी ने कहा…

priya milind,

Is dukhad ghadi main mujhe vo pal yaad aate hain jba tumhare Indore aane ke khabar ke liye main Baba ke saath a cup chai pee leta tha. Jab vo bimari se uthe tab bhi behad sahaj the. Hum unke saath bitaye kuth yaadgaar palon ko hamesha sambhal kar rakhange.

Rajendra Sharma

बेनामी ने कहा…

सर बड़ी हिम्मत करके आपको लिख रहा हूं सोचता हूं कि कहीं कुछ गलत ना लिख दूं। करीब एक हफ्ते पहले आपका ब्लॉग पढ़ा था लेकिन आधा पढ़ने के कारण टिप्पणी नहीं कर सका। आपके ब्ल़ॉग से ये साफ जाहिर होता है कि आप कितने भावुक इंसान हैं। और आप अपने पिता जी के कितने करीब थे। वाकई ये दुखद वाकया था। इस दिलवालों की दिल्ली में कुछ ऐसे बेदर्द लोग भी मौजूद हैं जिन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि दर्द से कराह रहा व्यक्ति भी किसी का रिश्तेदार है
और घर पर कोई उसका इंतजार कर रहा है। सर प्लीज इस बात का दुख ना करिएगा कि आपने अपने बाबा को दिल्ली क्यों बुलाया। इस बात को मैं एक कहानी से बयां करता हूं। (एक बार अमरनाथ गुफा में यमराज शिव जी के दर्शन को पहुंचे उनके साथ वरूण देव भी थे, यमराज ने गुफा के बाहर बैठे कबूतर के जोड़े को देखा और हंसते हुए अंदर चले गए, कबूतर घबरा गया और वरुण देव से बोला कि जरूर कुछ गड़बड़ है, अब मेरा अंत निश्चित है, वरुण देव कबूतर से बोले कि चिंता मत करो, और उस कबूतर को लेकर चल दिए, उस कबूतर को वो लाखों मील दूर छोड़ आए, जब यमराज गुफा के बाहर निकले तो वरुण देव ने उनसे कबूतर को देख कर हंसने का कारण पूछा तो वो बोले कि उस कबूतर का अंत समय आ गया था जबकि उसकी मृत्यु यहां से लाखों मील दूर होनी थी, अब तो इस बात से आप समझ गए होंगे कि हुइए वहीं जो राम रचि राखा, ये कहानी मुझे मेरे नानी के भाई ने मेंरे नाना की मृत्यु पर सुनाई थी, क्योंकि अपने आखिरी समय में कानपुर से अहमदाबाद अपने भाई के यहां मेंरे नाना जब पहुंचे तो एक हफ्ते के भीतर ही उनकी मृत्यू हो गई थी), सर हम सब इस दुख में आपके साथ हैं,उम्मीद है कि आपकों मेरी इस टिप्पणी से थोड़ी हिम्मत जरूर मिलेगी। किसी गलती के लिए माफी चाहूंगा.............

और आपकी सीख में से सबसे पहले मैं अपनी एक आदत को सुधार रहा हूं, वो है अंजान नंबर का फोन न पिक करना। अब से मैं सभी क़ॉल्स को पिक करूंगा।

बेनामी ने कहा…

सर बड़ी हिम्मत करके आपको लिख रहा हूं सोचता हूं कि कहीं कुछ गलत ना लिख दूं। करीब एक हफ्ते पहले आपका ब्लॉग पढ़ा था लेकिन आधा पढ़ने के कारण टिप्पणी नहीं कर सका। आपके ब्ल़ॉग से ये साफ जाहिर होता है कि आप कितने भावुक इंसान हैं। और आप अपने पिता जी के कितने करीब थे। वाकई ये दुखद वाकया था। इस दिलवालों की दिल्ली में कुछ ऐसे बेदर्द लोग भी मौजूद हैं जिन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि दर्द से कराह रहा व्यक्ति भी किसी का रिश्तेदार है
और घर पर कोई उसका इंतजार कर रहा है। सर प्लीज इस बात का दुख ना करिएगा कि आपने अपने बाबा को दिल्ली क्यों बुलाया। इस बात को मैं एक कहानी से बयां करता हूं। (एक बार अमरनाथ गुफा में यमराज शिव जी के दर्शन को पहुंचे उनके साथ वरूण देव भी थे, यमराज ने गुफा के बाहर बैठे कबूतर के जोड़े को देखा और हंसते हुए अंदर चले गए, कबूतर घबरा गया और वरुण देव से बोला कि जरूर कुछ गड़बड़ है, अब मेरा अंत निश्चित है, वरुण देव कबूतर से बोले कि चिंता मत करो, और उस कबूतर को लेकर चल दिए, उस कबूतर को वो लाखों मील दूर छोड़ आए, जब यमराज गुफा के बाहर निकले तो वरुण देव ने उनसे कबूतर को देख कर हंसने का कारण पूछा तो वो बोले कि उस कबूतर का अंत समय आ गया था जबकि उसकी मृत्यु यहां से लाखों मील दूर होनी थी, अब तो इस बात से आप समझ गए होंगे कि हुइए वहीं जो राम रचि राखा, ये कहानी मुझे मेरे नानी के भाई ने मेंरे नाना की मृत्यु पर सुनाई थी, क्योंकि अपने आखिरी समय में कानपुर से अहमदाबाद अपने भाई के यहां मेंरे नाना जब पहुंचे तो एक हफ्ते के भीतर ही उनकी मृत्यू हो गई थी), सर हम सब इस दुख में आपके साथ हैं,उम्मीद है कि आपकों मेरी इस टिप्पणी से थोड़ी हिम्मत जरूर मिलेगी। किसी गलती के लिए माफी चाहूंगा.............

और आपकी सीख में से सबसे पहले मैं अपनी एक आदत को सुधार रहा हूं, वो है अंजान नंबर का फोन न पिक करना। अब से मैं सभी क़ॉल्स को पिक करूंगा।

ketan ने कहा…

Milindji Iam sure you will survive through this.I feel this blog survives to stay and continues not to give you strenghth but derive it from you as your thousands of friends,disciples and students have in the past.

आदर्श कुमार ने कहा…

सर,
ट्विटर के जरिए आपके ब्लॉग तक पहुंचा। हाजी मस्तान का साक्षात्कार पढ़ रहा था- फिर आपके पुराने पोस्ट को खंगाला तो- बाबा- शीर्षक के तले आपके लिखे गए शब्दों से गुजरने लगा। उस वक्त जब मुझे खबर मिली थी तो मैंने सोचा था कि आपसे बात करूं- फिर हिम्मत नहीं जुटा पाया। पर आज खुद को रोक पाने में असमर्थ हूं। कुछ जख्म ऐसे होते हैं, जो हमेशा हरे रहते हैं। अपनों को खो देना- कुछ ऐसे ही घाव होते हैं, जिसकी टीस हमें हर पल महसूस होती है। सन् 2006 में मैंने अपनी मां को खो दिया और सन् 2010 में पापा को। अंतिम समय में मां के पास नहीं रह पाया था- यहां तक कि नौकरी के बाद मैं मिल भी नहीं पाया। उन्होंने कहा था कि चार-पांच दिनों की छुट्टी लेकर चले आओ पर हमें नहीं पता था कि वो अचानक इस तरह चली जाएंगी- फिर नई-नई नौकरी थी- सोचा तीन-चार महीने बाद भी जाएं तो कोई हर्ज नहीं- उस वक्त वो स्वस्थ थीं। मैं उनसे मिल नहीं पाया- ये बात आज भी कचोटती है। दूसरी स्थिति पापा से जुड़ी है। आप इस दौरान सभी हालात के साक्षी रहे हैं। आपने हरसंभव मदद की, मेरे साथ खड़े रहे। कभी-कभी लगता है कि हम अपनी तरफ से पापा-मम्मी के लिए कुछ नहीं कर पाए। तमाम सुख-सुविधाएं कभी-कभी बेमानी-सी लगती है। इकलौता लड़का होने के नाते मुझे अभी अपने फर्ज निभाने थे, उन्होंने मौका ही नहीं दिया। खैर, कुछ मिले तो कुछ खो जाए- रीत ये पुरानी है। आपने आखिरी पंक्तियों में जो कुछ लिखा है- उससे- सब कुछ हार जाने के बावजूद हिम्मत न हारने की प्रेरणा मिलती है।